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India Country's First EmergencyIndia Country's First Emergency

Country’s First Emergency : 25 जून, 1975 की यह तारीख हमारे देश में(Country’s First Emergency) इतिहास के पन्नों में काले अक्षरों से दर्ज है। उस समय के तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने 25 जून की रात पुरे देश में आपातकाल लागू कर दिया था।

तमाम विपक्षी नेताओं को रातोंरात गिरफ्तार करके जेलों में डाल दिया गया। इस आपातकाल में हजारों लोगों को जबरन पकड़ कर नसबंदी करवाई गई थी। आइये आज एक बार फिर से जानते है, इस आपातकाल लगाने के पीछे की पूरी जानकारी और देश पर इसका क्या असर पड़ा था।

12 जून 1975 का दिन सियासी तौर पर इलाहाबाद से लेकर दिल्ली तक गहमागहमी से भरा हुआ था। दिल्ली में राजनारायण के घर मेला सा लगा था तो इंदिरा गांधी के प्रधानमंत्री आवास पर लगातार आने-जाने वालों का तांता था। इलाहाबाद हाईकोर्ट के एक फैसले के बाद भीड़ ने दिल्ली में नारे लगाए, ” इंदिरा गांधी संंघर्ष करो हम तुम्हारे साथ हैं”, लोगों ने उनसे पद पर बने रहने का आग्रह किया।

first emergency in india in hindi

India Country’s First Emergency (Allahabad High Court judgment of June 1975)

12 जून 1975 को इलाहाबाद हाई कोर्ट ने इंदिरा गांधी को चुनाव में भ्रष्ट आचरण का दोषी ठहराया और उनके चुनाव को अवैध घोषित कर दिया। इसके परिणामस्वरूप उन्हें प्रधानमंत्री पद छोड़ने का आदेश दिया गया था, लेकिन उन्होंने इसके खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में अपील की और अस्थायी रूप से उनके पद पर बने रहने की अनुमति प्राप्त की। इस निर्णय ने राजनीतिक अस्थिरता को बढ़ा दिया।

जून 1975 का इलाहाबाद हाई कोर्ट का मामला इंदिरा गांधी के खिलाफ दायर एक चुनाव याचिका से संबंधित था। यह मामला उस समय के प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के 1971 के रायबरेली लोकसभा चुनाव में कथित भ्रष्ट आचरण और चुनावी कदाचार के आरोपों पर आधारित था। यह मामला राज नारायण, जो कि समाजवादी नेता और इंदिरा गांधी के खिलाफ चुनाव में पराजित उम्मीदवार थे, द्वारा दायर किया गया था।

इलाहाबाद हाईकोर्ट के कमरा नंबर 15 में ठीक 10 बजे इंदिरा गांधी के भाग्य का फैसला जस्टिस जगमोहन लाल सिन्हा कर चुके थे। उन्होंने तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को रायबरेली चुनावों में अनियमितताओं की राजनारायण की याचिका पर उन्हें दो मामलों में दोषी पाया। फैसले में उनके अगले 06 सालों तक कोई भी चुनाव लड़ने पर रोक लगा दी। जस्टिस सिन्हा ने उन्हें इस फैसले के खिलाफ अपील करने के लिए 20 दिनों का समय दिया।

India Country's First Emergency
India Country’s First Emergency

इलाहाबाद हाई कोर्ट के न्यायमूर्ति जगमोहन लाल सिन्हा ने 12 जून 1975 को इस मामले में निर्णय सुनाया। इस निर्णय के प्रमुख बिंदु निम्नलिखित थे:

चुनाव में अनियमितताएं:

अदालत ने पाया कि इंदिरा गांधी ने चुनाव के दौरान सरकारी संसाधनों का दुरुपयोग किया था। विशेष रूप से, उन्होंने सरकारी अधिकारियों की मदद ली थी और चुनाव प्रचार में सरकारी मशीनरी का इस्तेमाल किया था।

चुनाव परिणाम को अवैध घोषित करना:

न्यायमूर्ति जगमोहन लाल सिन्हा ने इंदिरा गांधी के 1971 के चुनाव को अवैध घोषित कर दिया और उन्हें दोषी ठहराया। इसके परिणामस्वरूप, उन्हें अपने पद से इस्तीफा देने का आदेश दिया गया और छह साल के लिए किसी भी निर्वाचित पद को धारण करने से अयोग्य करार दिया गया।

सुप्रीम कोर्ट में अपील:

इंदिरा गांधी ने इस निर्णय के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में अपील की। सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें अपील के लंबित रहने के दौरान अस्थायी राहत दी, जिससे वे प्रधानमंत्री पद पर बनी रह सकीं।

राजनीतिक अस्थिरता:

यह निर्णय इंदिरा गांधी और उनकी सरकार के लिए एक बड़ा झटका था और इससे देश में राजनीतिक अस्थिरता बढ़ गई। इसके बाद विपक्षी दलों ने इंदिरा गांधी के इस्तीफे की मांग की और देशभर में विरोध प्रदर्शन शुरू हो गए।

Decision of Supreme Court judge Justice VR Krishna Iyer

24 जून 1975 को सुप्रीम कोर्ट के जज जस्टिस वीआर कृष्णा अय्यर ने हाईकोर्ट के फैसले को सही ठहरा दिया. इसके साथ ही कोर्ट ने आदेश दिया कि इंदिरा गांधी को एक सांसद के तौर पर मिलने वाले सभी विशेषाधिकार बंद कर दिए जाएं और उन्हें मतदान से भी वंचित कर दिया गया. हालांकि, उन्हें प्रधानमंत्री के तौर पर बने रहने की छूट दी गई। ऐसे में इंदिरा गांधी को इस्तीफा देने के अलावा और कोई रास्ता नहीं बचा था।

ऐसे में कांग्रेस पार्टी ने एक बड़ी मीटिंग बुलाई। इस मीटिंग में ये तय करना था की इंदिरा के बाद देश का प्रधानमंत्री कौन बनेगा। काफी समय के बाद भी जब ये तय नहीं हो पाया तब कुछ बड़े नेता ने अपने हाथ में कमान लेने के लिए सोची लेकिन इंदिरा गांधी को अपने ही पार्टी में किसी पर भरोसा नहीं हो रहा था।

पार्टी के बीच में ही संजय गांधी ने इंदिरा गांधी को अंदर ले जाकर कुछ बात किया और फिर मामला इस पर अटक गया कि इंदिरा ही देश की प्रधानमंत्री बने रहेगी। लेकिन सुप्रीम कोर्ट के आदेश के कारण ये हो नहीं सकता था। काफी सोच विचार कर इंदिरा ने आर्टिकल 352 का इस्तेमाल करते हुए आपातकाल की घोषणा कर दिया था।

President Fakhruddin Ali Ahmed signs emergency papers

इंदिरा गांधी ने तत्कालीन राष्ट्रपति फखरुद्दीन अली अहमद से आर्टिकल 352 का इस्तेमाल करते हुए आपातकाल के कागजात पर दस्तखत करवाया था।
उस वक्त इंदिरा गांधी ने कैबिनेट को भी इसकी जानकारी नहीं दी थी, केवल कुछ विश्वस्त लोगों के पास ही यह जानकारी थी कि देश में आपातकाल लागू होने वाला है।

26 जून की सुबह इंदिरा गांधी ने ऑल इंडिया रेडियो के स्टूडियो से देशवासियों को आपातकाल की जानकारी दी थी. जिसके बाद देश में अफरातफरी मच गई।

India Country's First Emergency
India Country’s First Emergency

रातोंरात विपक्ष के सारे नेता जेल के अंदर All opposition leaders in jail overnight

आपातकाल लागू होते ही सेना ने मोर्चा संभाल लिया था। विपक्षी नेताओं को रातोंरात गिरफ्तार करके जेलों में डाल दिया गया। जिनमें जयप्रकाश नारायण (जेपी), अटल बिहारी वाजपेयी, मोरारजी देसाई और लालकृष्ण आडवाणी जैसे नेता शामिल थे। संजय गांधी ने अपनी पार्टी के मुख्यमंत्री को उन लोगों की लिस्ट सौंप दी थी, जो इमरजेंसी का विरोध कर रहे थे।

आदेश साफ था विरोध की हर आवाज को दबा दिया जाए। अखबारों में इंदिरा गांधी के खिलाफ कोई खबर न छपे, इसके लिए अखबारों की बिजली काट दी गई। अखबारों में सेंसरशिप लागू कर दी गई। कांग्रेस के बड़े नेता और अधिकारी अखबारों के दफ्तरों में बैठकर हर खबर को पढ़ने के बाद ही छापने की इजाजत देते थे।

25 जून 1975 को लगाया गया आपातकाल 21 महीने तक चला और 1977 में खत्म हुआ. यह आपातकाल देश के इतिहास का सबसे लम्बा आपातकाल माना जाता है। यह स्वतंत्र भारत के इतिहास में यह सबसे विवादस्पद समय था।

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