Historical Fort: भारत एक ऐसा देश है जो विविधता और संस्कृति से भरा हुआ है और इसमें कोई आश्चर्य नहीं है। इसमें दुनिया के कुछ सबसे रहस्यमय स्थान भी हैं, उनकी उत्पत्ति आज भी अज्ञात है। भारत में भुतहा किलों से लेकर प्राचीन मंदिरों तक भारत में सब कुछ है भारत जितना पुराना है उतनी ही पुरानी इसकी संस्कृति और सभ्यता है।
इस देश में कई ऐसे किले हैं जो कई 100 वर्षों से लेकर हजारों वर्षों तक पुराने हैं कई ऐसी इमारतें हैं जो अब खंडहर में तब्दील हो गए हैं। अब वहां भूतों का बसेरा होने की बात की जाती है यहां एक सुनी सुनाई बात पर आपकी राय जानना चाहूंगा।
1. जमाली कमाली मस्जिद:- यह जगह दिल्ली के दक्षिण दिल्ली के मेहरौली में स्थित है और इसका नाम जमाली कमाली मस्जिद है बता दूं कि यह मस्जिद देखने में काफी खूबसूरत होने के साथ ऐतिहासिक भी है जब आप यहां पर आएंगे तो आपको यहां से कुतुब मीनार का भी नजारा दिख जाएगा आइए जानते हैं इसके बारे में कहानी कुछ ऐसी है कि इस मस्जिद से दो शख्स का नाम जुड़ा हुआ है एक जमाली और दूसरा कमाली। मौलाना शेख जमाली अपने समय के महान कवि हुआ करते थे वह अपनी शायरी एवं कविताएं की वजह से काफी प्रसिद्ध हो गए थे।
उनके यही काबिलियत के बल पर उनको सिकंदर लोधी, बाबर, हुमायूं, बहलोल लोदी और इब्राहिम लोदी तक के सभी बादशाहों के दरबारी कवि का दर्जा मिला था। जहां तक रही कमाली नाम के शख्स का तो उनके बारे में कोई भी शिलालेख में परिचय अज्ञात है कुछ लोगों का कहना है कि यह जमाली के शिष्य या भाई थे। वहीं कुछ लोग इन दोनों कवियों को साथी का दर्जा दिए हैं खैर सच्चाई जो कुछ भी हो पर जिस भी शख्स का नाम कमाली था। वह जमाली का बहुत ही अजीज और प्रिय था।
इस जमाली कमाली मस्जिद का निर्माण मुगल सम्राट बाबर ने 1528 ईसवी के आसपास करवाया था हजरत जमाली यहीं इस मस्जिद में रहकर अल्लाह की इबादत किया करते थे। कहा जाता है कि 1536 ईसवी में हजरत जमाली की मृत्यु हो गई और तब उन्हें इसी मस्जिद के आंगन में दफनाया गया। हमने शुरू में ही कहा कि कमाली नाम के व्यक्ति के बारे में कुछ खास जानकारी नहीं है लेकिन बता दूं कि कमाली नाम के व्यक्ति का कब्र जमाली के कब्र के बगल में ही देखने को मिल जाएगी।
इन दोनों के कब्र का एक पास होना ही कारण है कि इसे जमाली कमाली की दरगाह के नाम से जाना जाता है। हलाकि इंटरनेट पर उपस्थित कुछ लेखों और लोगों की मान्यताओं के अनुसार यह जमाली कमाली नाम का दरगाह भुतहा है कुछ लोगों को यहां पर किसी की परछाई दिखती है तो किसी ने रात को यहां से डरावनी आवाजें आते सुनी हैं। दिन के समय यहां पर लोग आते जाते रहते हैं परंतु रात के समय जब यह वीरान हो जाता है। तब यहां के आसपास के लोगों ने कब्रों से दुआ की आवाजें भी आती सुनी हैं।
यहां पर रात्रि के समय किसी के ना होने के बावजूद भी मस्जिद से इबादत तिलावत की आवाज आती है। इसके पीछे लोगों का कहना है कि यहां जिन्नात इबादत किया करते हैं। आपको बता दें कि इस मस्जिद में रात के समय जाने पर पाबंदी है। आप दिन में यहां पर घूमने जाएंगे तो आप यहां के जमाली कमाली की कब्र के अलावे सभी जगहों पर घूम सकते हैं कब्र के पास किसी को भी जाने की अनुमति नहीं है।
2. रायसेन फोर्ट:- यह किला मध्य प्रदेश के भोपाल में है जिसके बारे में कहा जाता है कि यहां शासन कर रहे राजा ने खुद अपनी रानी का सिर काट दिया था। इस किले का इतिहास काफी रोमांचक है और अगर आप में साहस है और आप अपनी जान जोखिम में डाल सकते हैं। आप यहां जाकर अपनी किस्मत आजमा सकते हैं। बलुआ पत्थर से बने इस किले के चारों ओर बड़ी-बड़ी चट्टानों की दीवारें हैं। इन दीवारों के नौ द्वार और 13 बुर्ज हैं इसके अलावा यहां कई गुंबद और मध्यकाल की कई इमारतों के अवशेष भी मौजूद हैं।
हालांकि अब यह महल सैकड़ों चमगादड़ का घर है। इस किले का शानदार इतिहास रहा है यहां कई राजाओं ने शासन किया है जिनमें से एक शेरशाह सू री भी था। लेकिन शेरशाह सूरी को यह किला जीतने में उसके पसीने छूट गए थे। कहानीओ में बताया गया है कि चार महीने की घेराबंदी के बाद भी वह यह किला नहीं जीत पाया था फिर शेरशाह सूरी ने इस किले को जीतने के लिए तांबे के सिक्कों को गलवा कर तोपे बनवाया था। जिसकी बदौलत ही उसे जीत नसीब हुई थी।
कहानियां तो यह भी बताती हैं कि 1543 ईसवी में इसे जीतने के लिए शेरशाह ने धोखे का सहारा लिया था और उस समय इस किले पर राजा पूरणमल का शासन था। फिर राजा पूरणमल को जैसे ही यह पता चला कि उनके साथ धोखा हुआ है तो उन्होंने दुश्मनों से अपनी पत्नी रानी रत्नावली को बचाने के लिए रानी का सिर खुद ही काट दिया था। इस किले से जुड़ी एक और कहानी है जो बेहद ही रहस्यमय हैं। यहां के राजा राज सेन के पास पारस पत्थर था जो लोहे को भी सोना बना सकता था।
उस रहस्यमय पत्थर के लिए कई युद्ध भी हुए थे लेकिन जब राजा राज सेन हार गए थे तो उन्होंने पारस पत्थर को किले में ही स्थित एक तालाब में फेंक दिया था। कहानियों में बताया गया है कि कई राजाओं ने इस किले को खुदवा कर पारस पत्थर को खोजने की कोशिश की लेकिन उन्हें सफलता नहीं मिली। कहा जाता है कि आज भी लोग यहां रात के समय पारस पत्थर की तलाश में तांत्रिकों को अपने साथ लेकर आते हैं लेकिन अफसोस कि उन्हें निराशा ही हाथ लगती है।
इसको लेकर यह भी कहा जाता है कि यहां पत्थर को ढूंढने आने वाले कई लोग अपना मानसिक संतुलन भी खो चुके हैं क्योंकि पारस पत्थर की रक्षा एक जिन्न करता है।
3. जिंजी दुर्ग:- इतिहास के पन्नों पर वीरता का प्रतीक जिंजी किला जिसे जिंजी दुर्ग या सेंजी दुर्ग के नाम से भी जाना जाता है। पुडुचेरी में स्थित यह किला दक्षिण भारत के उत्कृष्ट किलों में से एक है। इस किले का निर्माण नौवीं शताब्दी में संभवत चोल राजवंशों द्वारा कराया गया था। इस किले की खूबसूरती यह है कि यह सात पहाड़ियों पर निर्मित कराया गया जिनमें कृष्ण गिरी,चंद्रा गिरी और राजगिरी की पहाड़ियां प्रमुख हैं यह किला इस प्रकार निर्मित है कि छत्रपति शिवाजी ने इसे भारत का सबसे अभेद्य दुर्ग कहा था।
वहीं अंग्रेजों ने इसे पूर्व का ट्रॉय कहा था दरअसल ट्रॉय नाम का अर्थ है पैदल सैनिक या ट्रॉयस का वंशज जो एक मजबूत और बहादुर व्यक्ति के विचार को दर्शाता है, अपने परिवार और अपने मूल्यों की रक्षा के लिए तैयार है। ऊंची दीवारों से घिरा हुआ यह किला रणनीतिक रूप से इस प्रकार बनाया गया था कि दुश्मन इस पर आक्रमण करने से पहले कई बार सोचते थे क्योंकि यह किला पहाड़ियों पर स्थित है। आज भी यहां के राज दरबार तक दो घंटे की चढ़ाई के बाद ही पहुंचा जा सकता है।
यह किला लगभग 11 वर्ग किलोमीटर के क्षेत्र फल में फैला है जिसकी दीवारों की लंबाई लगभग 13 किलोमीटर है। इस किले का मुख आकर्षण राजगिरी है जहां एक पिरामिड नुमा शीर्ष से सजी बहुमंजिला कल्याण महल है। इसके अलावा राजगिरी पहाड़ी के निचले हिस्से में महल अन्नागिरी है जो अंग्रेजों के अधीन रहा है। 17वीं शताब्दी में शिवाजी महाराज के नेतृत्व में मराठों द्वारा इस किले को किसी भी हमलावर सेना से बचाने के लिए पुन निर्मित किया गया था।
फिलहाल यह किला तमिलनाडु पर्यटन क्षेत्र का एक सर्वाधिक रोचक स्थल है जहां हर साल हजारों की संख्या में लोग घूमने के लिए आते रहते हैं।
4. शेरगढ़ का किला:- शेरशाह सूरी के इस किले में सैकड़ों सुरंगे और तहखाने हैं जिनके बारे में कहा जाता है कि यह सुरंगे कहां खुलती हैं इसके बारे में आज तक किसी को भी पता नहीं चला है। कैमूर की पहाड़ियों पर मौजूद इस किले की बनावट दूसरे किलों से बिल्कुल अलग है यह इस तरह से बनाया गया है कि बाहर से यह किला किसी को भी नहीं दिखता है। यह किला तीन तरफ से जंगलों से घिरा हुआ है जबकि इसके एक तरफ दुर्गावती नदी है किले के अंदर जाने के लिए एक सुरंग से होकर जाना पड़ता है।
कहते हैं कि अगर सुरंग को बंद कर दिया जाए तो किला किसी को दिखाई भी नहीं देगा यहां बने तहखाने के बारे में कहा जाता है कि यह इतने बड़े हैं कि उसमें एक साथ 10000 लोग आ सकते हैं। इस किले को शेरशाह सूरी ने अपने दुश्मनों से बचने के लिए बनवाया था। वह अपने परिवार और सैनिकों के साथ यहीं पर रहते थे। यहां उनके लिए सुरक्षा से लेकर तमाम तरह की सुविधाएं मौजूद थी। इस किले को इस तरह बनवाया गया है कि हर दिशा में अगर दुश्मन 10 किलोमीटर दूर भी रहे तो उसे आते हुए साफसाफ देखा जा सकता है।
इसी किले में मुगलों ने शेरशाह सूरी उनके परिवार और हजारों सैनिकों को मौत के घाट उतार दिया था। बताया जाता है कि यह किला सन 1540 से 1545 के बीच बना है यहां सैकड़ों सुरंगों को इसलिए बनवाया गया था ताकि मुसीबत के समय सुरक्षित बाहर निकला जा सके कहते हैं। इन सुरंगों का राज सिर्फ शेरशाह सूरी और उनके भरोसेमंद सैनिकों को ही पता था। इस किले से एक सुरंग रोहतासगढ़ किले तक जाती है लेकिन बाकी सुरंगे कहां जाती हैं यह किसी को नहीं पता।
इस किले में शेरशाह का बेशकीमती खजाना भी कहीं छुपा हुआ है। वह आज तक किसी को नहीं मिल पाया इस किले में सुरंगों और तहखाने का जाल इस तरह बिछा हुआ है कि लोग इसके अंदर जाने से भी डरते हैं।
5. जहांगीर महल :- मध्य प्रदेश के ओरछा शहर में भी ऐसे कई महल और फोर्ट हैं जहां घूमने के लिए लाखों देशी और विदेशी सैलानी पहुंचते रहते हैं। ओरछा में स्थित जहांगीर महल की कहानी लाखों सैलानियों के लिए बेहद ही जिज्ञासा का केंद्र है। जहांगीर महल का इतिहास बेहद ही रोचक है कहा जाता है कि इस भव्य फोर्ट का निर्माण ओरछा के राजा वीर सिंह के शासनकाल में हुआ था। इस मध्यकालीन महल के बारे में कहा जाता है कि जब इसका निर्माण होने वाला था तब भव्य यज्ञ के साथ इसका शिलान्यास किया गया था।
जहांगीर महल के बारे में यह भी लोक कथा है कि इसका निर्माण उस स्थान पर किया गया था जहां दुश्मन सैनिक आसानी से नहीं पहुंच सकते थे। जब इस महल का निर्माण किया गया था तो प्रवेश द्वार पूर्व की ओर था लेकिन कुछ वर्षों बाद इसका द्वार पश्चिम दिशा में कर दिया गया। इसे कई लोग 52 इमारतों वाला जहांगीर महल के नाम से भी जानते हैं। जिस तरह इस महल का इतिहास रोचक है ठीक उसी तरह इस महल से जुड़े कुछ तथ्य भी बेहद रोचक है।
इस महल के बारे में बोला जाता है कि हिंदू राजा राजा वीर सिंह ने इस महल का निर्माण अपने खास मित्र जहांगीर के लिए निर्माण करवाया था। एक अन्य लोक कथा के अनुसार इस महल को बनाने में लगभग 22 साल लग गए थे। इतिहास के अनुसार इस महल में जहांगीर सिर्फ एक रात के लिए ठहरा था इसीलिए इस महल को कई लोग जहांगीर महल या फिर सलीम महल के नाम से भी जानते हैं। इस महल को वीर सिंह और जहांगीर दोनों की दोस्ती का प्रतीक भी माना जाता है।
इसके अलावा इसे कई लोग बुंदेला और मुगल का प्रतीक भी मानते हैं। जहांगीर महल की वास्तुकला भी एक रोचक विषय है। इस महल के बारे में बोला जाता है कि यह बुंदेला और मुगल शिल्प कला का एक बेजोड़ नमूना है। इस महल का निर्माण आयताकार चबूतरे पर बना है। इसके अलावा इस महल की वास्तुकला के बारे में बोला जाता है कि जहांगीर महल खूबसूरत सीढ़ियों और विशाल गेट के लिए भी प्रसिद्ध है। आपको बता दूं कि इस महल में लगभग हर जगह बुंदेलों की वास्तुकला देखने को मिल जाएगी।
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