Jagannath Rath Yatra : जगन्नाथ रथ यात्रा, जिसे रथ महोत्सव भी कहा जाता है, भगवान जगन्नाथ से संबंधित एक प्रमुख हिंदू त्योहार है, जिन्हें भगवान विष्णु और भगवान कृष्ण का अवतार माना जाता है। यह विशेष रूप से ओडिशा राज्य में मनाया जाता है, खासकर पुरी शहर में, जहां मुख्य जगन्नाथ मंदिर स्थित है।
Story of origin of Lord Jagannath
विष्णु और ब्रह्मा का संवाद:
एक बार भगवान विष्णु ने ब्रह्मा से कहा कि वे धरती पर एक विशेष रूप में अवतरित होना चाहते हैं ताकि वे अपने भक्तों को अधिक सुलभता से दर्शन दे सकें। ब्रह्मा ने उन्हें सुझाव दिया कि वे उड़ीसा के पुरी में अपने दिव्य रूप में प्रकट हों।
राजा इंद्रद्युम्न की तपस्या:
पुरी के राजा इंद्रद्युम्न ने एक बार भगवान विष्णु के स्वप्न में दर्शन प्राप्त किए। विष्णु ने राजा को बताया कि उन्हें नीलमाधव (विष्णु का एक स्वरूप) के रूप में पुरी में एक मंदिर का निर्माण करना चाहिए। राजा ने विष्णु के निर्देशानुसार तपस्या की और उनके निर्देशानुसार समुद्र किनारे नीलाचल पर्वत पर मंदिर निर्माण की योजना बनाई।
विद्यापति की यात्रा:
राजा इंद्रद्युम्न ने अपने ब्राह्मण पुजारी विद्यापति को नीलमाधव की मूर्ति की खोज में भेजा। विद्यापति ने जंगल में एक विशिष्ट जनजाति के सरदार, विश्वावसु से मुलाकात की, जो नीलमाधव की पूजा करते थे। विश्वावसु ने विद्यापति को एक शर्त पर नीलमाधव के दर्शन करने की अनुमति दी कि उनकी आंखों पर पट्टी बांध दी जाएगी। विद्यापति ने यह शर्त मान ली, लेकिन उसने चुपके से रास्ते में सरसों के बीज गिरा दिए।
नीलमाधव का दर्शन:
विद्यापति ने नीलमाधव के दर्शन किए और वापस लौटकर राजा इंद्रद्युम्न को इसकी जानकारी दी। राजा ने तुरंत वहाँ जाने का निर्णय लिया, लेकिन जब वे वहाँ पहुँचे, तब तक नीलमाधव की मूर्ति अदृश्य हो चुकी थी। राजा ने निराश होकर समुद्र किनारे तपस्या की।
भगवान विष्णु का प्रकट होना:
भगवान विष्णु ने राजा की तपस्या से प्रसन्न होकर उसे दर्शन दिए और कहा कि वे एक दिव्य लकड़ी के रूप में प्रकट होंगे। राजा ने उस लकड़ी से भगवान जगन्नाथ, उनके भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा की मूर्तियाँ बनवाईं।
विशेष मूर्तिकार:
मूर्ति बनाने के लिए एक रहस्यमय वृद्ध मूर्तिकार आया, जिसने शर्त रखी कि वह दरवाजा बंद करके मूर्तियाँ बनाएगा और कोई भी दरवाजा नहीं खोलेगा जब तक वह काम पूरा न कर ले। राजा इंद्रद्युम्न और उसकी रानी ने यह शर्त मानी, लेकिन मूर्तिकार के गायब हो जाने के डर से उन्होंने दरवाजा खोल दिया। अंदर उन्होंने भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा की अधूरी मूर्तियाँ देखीं। मूर्तियाँ अधूरी होने के बावजूद दिव्य थीं और तभी से इन्हें उसी रूप में पूजा जाता है।
Get Goosebumps Every time i watch This 🥺❤️
E year Elagaina Odisha lo jagannath Rath Yatra Chudali 🙏🙏
Jai Shree Jagannath
Jai Shree Krishna ❤️🕉️🙏 pic.twitter.com/XU6nKSdCrN— || PsʏᴄʜᴏᴘᴀᴛH || 🚩 (@sai__varma007) January 13, 2024
Jagannath Rath Yatra 2024 in hindi
भगवान जगन्नाथ का मंदिर के ध्वज (झंडा) की कहानी भी बहुत रोचक और महत्वपूर्व है। यह ध्वज हर दिन बदलता है और इसमें कई रहस्यमय और अद्भुत तथ्य जुड़े हुए हैं।
झंडे की अनूठी विशेषताएं:
प्रतिदिन बदलता है झंडा: मंदिर के शिखर पर स्थित झंडा प्रतिदिन बदला जाता है। यह कार्य एक निश्चित समय पर किया जाता है और इसे बदलने की परंपरा वर्षों से चली आ रही है।
विपरीत दिशा में फहराना: यह देखा गया है कि मंदिर का झंडा हमेशा हवा के विपरीत दिशा में फहराता है, जो कि एक अद्भुत और रहस्यमयी घटना मानी जाती है।
दिव्य तत्व: यह माना जाता है कि भगवान जगन्नाथ का आशीर्वाद झंडे में समाहित है और इसे बदलने से व्यक्ति के जीवन में सकारात्मक बदलाव आते हैं।
उच्चतम स्थान पर स्थित: यह झंडा मंदिर के शिखर पर बहुत ऊँचाई पर स्थित होता है और इसे बदलने का कार्य बहुत ही साहसिक और जोखिमपूर्ण माना जाता है। इसे बदलने के लिए विशेष रूप से प्रशिक्षित सेवक (पंडा) ही जाते हैं।
पौराणिक कथा:
भगवान जगन्नाथ के झंडे के पीछे कई पौराणिक कथाएँ और विश्वास जुड़े हुए हैं। इनमें से एक प्रमुख कथा है कि यह झंडा भगवान विष्णु के वाहन गरुड़ को समर्पित है। गरुड़ को भगवान विष्णु का प्रिय वाहन माना जाता है और इसलिए झंडे पर गरुड़ की छवि भी उकेरी जाती है।
धार्मिक महत्व:
भगवान जगन्नाथ का झंडा श्रद्धालुओं के लिए बहुत ही पवित्र माना जाता है। इसे देखने से और इसकी पूजा करने से व्यक्ति के जीवन में सुख-शांति और समृद्धि आती है।
झंडे के बदलने की प्रक्रिया:
झंडा बदलने की प्रक्रिया एक पवित्र और धार्मिक अनुष्ठान के तहत की जाती है। इसे बदलने के दौरान विशेष मंत्रोच्चार और विधियों का पालन किया जाता है।
इस प्रकार भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा की मूर्तियाँ स्थापित हुईं और पुरी का जगन्नाथ मंदिर एक महत्वपूर्ण तीर्थस्थल बन गया।
Some major historical and cultural significance of Jagannath Rath Yatra
प्राचीन उत्पत्ति: रथ यात्रा एक प्राचीन त्योहार है जिसे सदियों से मनाया जा रहा है। इसे अनादि काल से मनाए जाने का विश्वास है, और ऐतिहासिक रिकॉर्ड 12वीं सदी तक के हैं।
सांस्कृतिक एकता: यह त्योहार सांस्कृतिक एकता और भाईचारे का प्रतीक है, जो भारत और विदेशों से लाखों भक्तों को आकर्षित करता है, जाति, धर्म और संप्रदाय से परे।
देवता और रथ:
देवता: रथ यात्रा के दौरान मुख्य देवता भगवान जगन्नाथ (कृष्ण का एक रूप), उनके बड़े भाई बलभद्र, और उनकी बहन सुभद्रा हैं।
रथ का नाम :
नंदीघोषा: भगवान जगन्नाथ का रथ, जो लगभग 45 फीट ऊंचा होता है और इसमें 16 पहिए होते हैं।
तालध्वज: बलभद्र का रथ, जो लगभग 44 फीट ऊंचा होता है और इसमें 14 पहिए होते हैं।
दर्पदलन: सुभद्रा का रथ, जो लगभग 43 फीट ऊंचा होता है और इसमें 12 पहिए होते हैं।
जुलूस:
पहांडी: त्योहार की शुरुआत पहांडी नामक समारोह से होती है, जिसमें देवताओं को जगन्नाथ मंदिर से बाहर लाकर उनके संबंधित रथों पर स्थापित किया जाता है।
छेरा पहाड़ा: यह एक महत्वपूर्ण अनुष्ठान है जिसमें पुरी के गजपति राजा सोने की झाड़ू से रथों की सफाई करते हैं, जो विनम्रता और समानता का प्रतीक है।
रथ खींचना: भक्त रथों को रस्सियों से खींचते हुए पुरी की सड़कों से गुंडिचा मंदिर तक ले जाते हैं, जो लगभग 3 किलोमीटर दूर है। यह यात्रा भगवान जगन्नाथ की उनके जन्मस्थान की यात्रा का प्रतीक है।
गुंडिचा मंदिर:
नौ दिनों का प्रवास: देवता गुंडिचा मंदिर में नौ दिनों तक रहते हैं। इस अवधि में विभिन्न अनुष्ठान और उत्सव होते हैं।
सोनपुरा गारुड़ विहार: इस दौरान भक्त गुंडिचा मंदिर में देवताओं के दर्शन करते हैं।
वापसी यात्रा: नौ दिनों के बाद, देवता एक समान जुलूस में जगन्नाथ मंदिर लौटते हैं, जिसे बहुदा यात्रा कहा जाता है।
Jagannath Rath Yatra Celebrations and Activities
भजन और कीर्तन: भक्त पूरे जुलूस के दौरान भजन गाते और नृत्य करते हैं।
प्रसादम: देवताओं को विशेष भोग अर्पित किया जाता है और बाद में भक्तों में प्रसाद के रूप में वितरित किया जाता है।
मेला: मंदिर और जुलूस मार्ग के आसपास अस्थायी बाजार और मेले लगते हैं, जो त्योहार के माहौल को और भी अधिक आनंदमय बनाते हैं।
Jagannath Rath Yatra Ancient Origin
वैदिक और पुराणिक संदर्भ: जगन्नाथ रथ यात्रा की उत्पत्ति वैदिक काल से मानी जाती है। कई पुराणों में इस यात्रा का उल्लेख मिलता है, जिनमें स्कंद पुराण, ब्रह्म पुराण, और पद्म पुराण शामिल हैं। इन ग्रंथों में भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा की रथ यात्रा का वर्णन किया गया है।
आदि शंकराचार्य: आदि शंकराचार्य (8वीं सदी) ने भी इस महोत्सव का उल्लेख किया है और इसे सनातन धर्म के प्रमुख उत्सवों में से एक माना।
Jagannath Rath Yatra Historical Events
अंजलिक मंदिर और 12वीं सदी: 12वीं सदी में, गंग वंश के राजा अनंग भीम देव ने पुरी में जगन्नाथ मंदिर का निर्माण करवाया। इस समय से रथ यात्रा को अधिक संगठित और भव्य रूप में मनाया जाने लगा।
गजपति राजाओं का संरक्षण: ओडिशा के गजपति राजाओं ने इस महोत्सव को बहुत प्रोत्साहन दिया। उन्होंने रथ यात्रा के दौरान कई महत्वपूर्ण अनुष्ठान शुरू किए, जैसे छेरा पहाड़ा, जिसमें राजा स्वयं सोने की झाड़ू से रथों की सफाई करते हैं।
Jagannath Rath Yatra Cultural and Religious Impact
सामाजिक समरसता: रथ यात्रा ने समाज में सांस्कृतिक और धार्मिक समरसता को बढ़ावा दिया। विभिन्न जाति और वर्ग के लोग इस महोत्सव में एक साथ शामिल होते हैं, जो भक्ति और सामूहिकता का प्रतीक है।
वैष्णव परंपरा: वैष्णव परंपरा में, रथ यात्रा भगवान कृष्ण की लीला का प्रतिनिधित्व करती है। इसे भगवान कृष्ण की मथुरा और वृंदावन यात्रा के रूप में भी देखा जाता है।
Jagannath Rath Yatra 2024
जगन्नाथ रथ यात्रा 2024 की तैयारी और आयोजन को लेकर कुछ महत्वपूर्ण जानकारी निम्नलिखित है:
रथ यात्रा प्रारंभ: 8 जुलाई 2024
इस दिन भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा को उनके रथों पर बैठाया जाएगा और वे जगन्नाथ मंदिर से गुंडिचा मंदिर की ओर प्रस्थान करेंगे।
बहुदा यात्रा: 17 जुलाई 2024
यह वह दिन है जब देवता गुंडिचा मंदिर से लौटकर जगन्नाथ मंदिर में वापस आते हैं।
Kashi Vishwanath : जानें इस मंदिर से जुडी कुछ पौराणिक कथाएं
प्रमुख अनुष्ठान और आयोजन
पहांडी बीजा: देवताओं को मंदिर से बाहर लाकर रथों पर स्थापित करने की प्रक्रिया।
छेरा पहाड़ा: पुरी के गजपति राजा द्वारा रथों की सफाई सोने की झाड़ू से की जाती है, जो विनम्रता और समानता का प्रतीक है।
रथ खींचना: भक्त रथों को खींचते हैं, जो करीब 3 किलोमीटर की दूरी पर स्थित गुंडिचा मंदिर तक ले जाया जाता है।
रथ यात्रा की विशेषताएँ
रथों का निर्माण: हर साल नए रथ बनाए जाते हैं। प्रत्येक रथ का विशेष नाम, आकार, और रंग होता है।
नंदीघोषा: भगवान जगन्नाथ का रथ, 45 फीट ऊंचा और 16 पहियों वाला।
तालध्वज: बलभद्र का रथ, 44 फीट ऊंचा और 14 पहियों वाला।
दर्पदलन: सुभद्रा का रथ, 43 फीट ऊंचा और 12 पहियों वाला।
अन्य अनुष्ठान:
गुंडिचा मंदिर में नौ दिन का प्रवास: देवता नौ दिनों तक गुंडिचा मंदिर में रहते हैं, जहां विभिन्न पूजा और उत्सव होते हैं।
सोनपुरा गारुड़ विहार: इस दौरान भक्त गुंडिचा मंदिर में देवताओं के दर्शन करते हैं।
Jagannath Rath Yatra Global Celebration
भक्तों की भीड़: लाखों भक्त इस यात्रा में भाग लेते हैं, जो इसे विश्व के सबसे बड़े धार्मिक जुलूसों में से एक बनाते हैं।
अंतर्राष्ट्रीय समारोह: रथ यात्रा भारतीय प्रवासी समुदाय और अंतर्राष्ट्रीय कृष्णभावनामृत संघ (इस्कॉन) द्वारा दुनिया भर में लंदन, न्यूयॉर्क और अन्य प्रमुख शहरों में मनाई जाती है।
यात्रा के लिए तैयारी
आवास और सुविधा: पुरी में इस दौरान अत्यधिक भीड़ होती है, इसलिए यात्रा की योजना पहले से बनानी चाहिए। विभिन्न धर्मशालाएँ, होटेल और अन्य आवास सुविधाएँ उपलब्ध होती हैं।
सुरक्षा और प्रबंधन: राज्य सरकार और स्थानीय प्रशासन सुरक्षा और प्रबंधन के लिए व्यापक इंतजाम करते हैं।
जगन्नाथ रथ यात्रा 2024 एक महत्वपूर्ण धार्मिक और सांस्कृतिक कार्यक्रम होगा, जिसमें लाखों भक्त भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा की यात्रा का हिस्सा बनेंगे। यह यात्रा भक्तों के लिए आस्था, भक्ति और उत्साह का प्रतीक होगी। यदि आप इस अद्भुत और दिव्य अनुभव का हिस्सा बनना चाहते हैं, तो अपने यात्रा की योजना अभी से बनाएं और इस महोत्सव की आध्यात्मिक और सांस्कृतिक महिमा का आनंद लें।
ये भी पढ़े:-Somnath Jyotirlinga Temple : जानें इस मंदिर से जुड़े कुछ रोचक कहानी
[…] […]