Kashi Vishwanath : श्री विश्वेश्वर ज्योतिर्लिंग उत्तर प्रदेश के वाराणसी में गंगा जी के किनारे स्थित है वाराणसी का पौराणिक नाम काशी है। इसलिए ज्योतिर्लिंग को काशी विश्वनाथ भी कहते हैं।
Mythological story of establishment of Kashi Vishwanath Jyotirlinga
भगवान शिव तथा माता सती के विवाह के पश्चात एक बार दोनों गगन विहार के लिए निकले थे। प्यार करते-करते माता सती महादेव से कैसे आनंदकानन अर्थात आनंद वन का निर्माण करने के लिए कहती हैं जो ब्रह्मा जी की सूची से अलग हो अलौकिक हो और जहां वे महादेव के साथ कुछ समय के लिए एकांतवास कर सकें।
तब महादेव माता सती की इच्छा पूर्ण करने के लिए ब्रह्माजी की सृष्टि से अलग आकाश में 15 पोस्ट लंबे-चौड़े आनंद वन का निर्माण करते हैं। वह बन अत्यंत सुंदर एवं अलौकिक था। तत्पश्चात भगवान महादेव माता सती के साथ उस आनंद वन में आनंद विहार करने लगे। माता सती को उस आनंद वन में आनंद में परमानंद की प्राप्ति हुई।
प्रथम माता ने महादेव से कहा कि वह चाहती हैं कि यह परमानंद दुखों से मुक्ति चाहने वाले प्रत्येक प्राणी को प्राप्त हो। तब भगवान महादेव कहते हैं कि देवी आप समस्त संसार की माता हो इसलिए आपके मन में जनकल्याण की भावना का होना स्वभाविक है। मैं आपकी यह ख्वाहिश पूरी करुंगा।
तब महादेव भगवान श्री विष्णु जी को वह उस आनंद वन में तपस्या करने के लिए कहते हैं ताकि उनकी तपस्या से उस क्षेत्र में तप ज्ञान तथा भक्ति का प्रसार हो तथा वह क्षेत्र दुखों से पीड़ित प्राणियों के लिए मुक्ति का केंद्र बन सके। उस क्षेत्र में भगवान श्री विष्णु जी ने अपने सुदर्शन चक्र से एक कुंड बनाया और कई हजार वर्ष तक तपस्या की तपस्या करते-करते भगवान श्री विष्णु जी का स्वेद अर्थात पसीना बहने लगा।
वे स्वेद तपस्या के साथ और बढ़ने लगा तथा जल का रूप धारण करके सुदर्शन चक्र निर्मित कुंड में भरने लगा। भगवान श्री विष्णु जी की तपस्या से उस अनंत पुण्य एवं पवित्र क्षेत्र में तप ज्ञान तथा भक्ति की स्थापना हुई। भगवान श्री विष्णु के शरीर से स्वेद की अनेक जल धाराएं फूट पड़ी जिसके कारण उस पवित्र क्षेत्र सहित समस्त आकाश जल से व्याप्त हो गया। यह देख कर भगवान शिव उस पंच कोसी क्षेत्र को अपने त्रिशूल पर धारण कर लेते हैं।
भगवान विष्णु की तपस्या पूर्ण होने पर वह भाव विभोर होकर अपना सिर हिलाते है तो उनके कान से एक कंठफूल उस कुंड में गिर जाता हैं। मणिकर्णिका कुंड के नाम से भी आज भी काशी में स्थित है। तब भगवान महादेव माता सती की इच्छा से उस पंच कोसी क्षेत्र को पृथ्वी पर स्थापित कर देते हैं। वहीं क्षेत्र आज काशी अथवा वाराणसी के नाम से प्रसिद्ध है।
तब भगवान श्री विष्णु महादेव से प्रार्थना करते हैं कि हे महादेव जब तक आप दोनों यहां संयुक्त रूप से निवास नहीं करेंगे। तब तक यह काशी नगरी सुनी रहेगी। तब भगवान महादेव तथा माता सती इन दोनों संयुक्त रूप से शिवलिंग के रूप में प्रकट हुए और शिवलिंग श्री विश्वेश्वर ज्योतिर्लिंग के नाम से विख्यात हुआ।
महादेव तथा माता सती की ज्योति आलोकित काशी विश्वनाथ ज्योतिर्लिंग सतयुग से कलयुग तक अपने भक्तों की मनोकामना पूर्ण करता रहा है। यह थी काशी विश्वनाथ ज्योतिर्लिंग की स्थापना की पौराणिक कथा
5 महीने में तीन करोड़ श्रद्धालुओं ने किए काशी विश्वनाथ के दर्शन, बरसा इतना धन कि टूटे सारे रिकॉर्ड#KashiVishwanathDham #KashiVishwanathMandir #KashiVishwanathTemple
Read more: https://t.co/jH1Qld3uAk pic.twitter.com/ElujTiF61s
— India TV (@indiatvnews) June 21, 2024
How to reach Kashi Vishwanath
किसी भी काल में नहीं हुआ काशी का विनाश Kashi Vishwanath was not destroyed in any period
अब बात करते हैं काशी विश्वनाथ से जुड़े कुछ रोचक तथ्यों के बारे में है। काशी भगवान महादेव की सबसे प्रिय नगरी है। इसे भगवान महादेव तथा माता पार्वती का निवास स्थान कहां जाता है। पुराणों में वर्णित है कि प्रलय काल में भी काशी का विनाश नहीं होता। उसे भगवान महादेव इसे अपने त्रिशूल पर धारण कर लेते हैं और सृष्टिकाल आने पर उन्हें प्रति पर स्थापित करते हैं।
इस कारण काशी को अविनाशी नगरी भी कहा जाता है। प्राचीन काल से ही मुक्ति पाने के लिए लोग काशी में जाकर प्राण त्यागते हैं। क्योंकि पुराणों में वर्णित है कि इस दिन भगवान भोलेनाथ मरते हुए प्राणी के कान में तारक मंत्र का उपदेश करते हैं। जिससे वे प्राणी आवागमन से छूट जाता है। इस स्थान का पौराणिक नाम काशी है। किंतु वर्णन तथा हंसी दो नदियों के किनारे बसे होने के कारण इस जगह का नाम वाराणसी पड़ा।
काशी के पूर्व में गंगा नदी उत्तर में वरुणा नदी तथा दक्षिण में हंसी नदी बहती है। पूरे विश्व से लोग काशी दर्शन करने आते हैं। यहां की गंगा आरती पूरे विश्व में प्रसिद्ध है। वर्तमान मंदिर का निर्माण महारानी अहिल्याबाई होल्कर जी द्वारा 1780 में करवाया गया था।
बाद में महाराजा रणजीत सिंह जी ने 1853 में इस मंदिर पर 1000 किलोग्राम सोने से मढ़वाया था। इसी कारण इसे स्वर्ण मंदिर भी कहते हैं। भगवान महादेव हर साल कुछ समय के लिए कैलाश छोड़कर काशी में रहने आते हैं।
यहाँ शनिदेव ने किया था साढ़े 7 साल तक इंतजार Shani dev waited here for 7 and a half years
एक कथा के अनुसार एक बार शनिदेव भगवान महादेव के दर्शन करने के लिए उन्हें ढूंढते में काशी आए और साढ़े 7 साल तक मंदिर के बाहर खड़े रहे हैं। यही कारण है कि काशी विश्वनाथ मंदिर के बाहर एक प्राचीन शनि मंदिर है। मंदिर के पास ही एक ज्ञानवापी कुआँ है।
मान्यता है कि इस कुआँ को खुद भगवान महादेव ने अपने त्रिशूल से खोदा था। इस कुएं का जल पीने से मनुष्य को ज्ञान भक्ति तथा मुक्ति की प्राप्ति होती है। काशी में कुल चौरासी घाट है। यह घाट लगभग चार मील लंबी तट पर बने हैं।
काशी के सबसे प्रसिद्ध घाट Most famous ghats of Kashi Vishwanath
सबसे प्रसिद्ध घाट है दशाश्वमेध घाट। इस घाट पर स्वयं ब्रह्माजी ने 10 अश्वमेघ यज्ञ कराए थे। इसीलिए इस जगह का नाम दशाश्वमेध घाट पड़ा। विश्व प्रसिद्ध गंगा आरती इसी घाट पर की जाती है। प्रत्येक घाट के साथ कोई न कोई पौराणिक कथा है।
कुछ प्रमुख इस प्रकार है हरिश्चंद्र घाट, मुंशी घाट. नारद घाट केशव घाट पंचगंगा घाट अस्सी घाट तुलसी घाट आदि। वाराणसी के घाट गंगा नदी के धनुष की आकृति होने के कारण मनोहारी लगते हैं। सभी घाटों के पूर्व दिशा में होने के कारण सूर्यौदय के समय सूर्य की पहली किरण दस्तक देती है। मत्स्य पुराण के अनुसार इन घंटों में पांच प्रमुख घाट सामूहिक रूप से पंचतीर्थ जाते हैं।
इनके नाम है अस्सी घाट, दशाश्वमेध घाट, मणिकर्णिका घाट पंचगंगा घाट तथा केशव घाट। काशी विश्वनाथ के समीप ही कोलकाता के 51 शक्तिपीठों में से एक माता विशालाक्षी शक्तिपीठ स्थित है। यहाँ पर माता सती के दाहिने कान के मणि जड़ें कुंटल गिरे थे।
यहां की पंचकोसी परिक्रमा सभी मनोरथ पूर्ण करने वाली मानी जाती है। त्रेता युग में भगवान राम ने माता सीता तथा तीन भाइयों सहित पंच कोसी परिक्रमा की थी। द्वापर युग में पांडवों ने द्रौपदी सहित पंच कोसी की परिक्रमा की थी।
आप कैसे पहुंच सकते है काशी विश्वनाथ How can you reach Kashi Vishwanath
अब बात करते हैं कि श्री काशी विश्वनाथ के दर्शनों के लिए कैसे पहुंचा जाए। सबसे समीप रेलवे स्टेशन वाराणसी जंक्शन है। भारत के सभी प्रमुख शहरों से यहां के लिए डायरेक्ट ट्रेन चलती हैं। वाराणसी जंक्शन से मंदिर की दूरी मात्र चार किलोमीटर है।
रेलवे स्टेशन से मंदिर के लिए आप रिक्शा और ऑटो व टैक्सी भी कर सकते हैं। सबसे समीप एयरपोर्ट लाल बहादुर शास्त्री एयरपोर्ट वाराणसी में स्थित है। यहां से मंदिर की दूरी 25 किलोमीटर है। इस एयरपोर्ट से मंदिर तक जाने के लिए नियमित टैक्सी चलती है।
विशेष पूजा आरती बुकिंग अथवा एडवांस रूम बुकिंग के लिए आप मंदिर की ऑफिशियल वेबसाइट https://www.shrikashivishwanath.org/ पर जाकर बुक कर सकते हैं।
ये भी पढ़े:-Education : 10 रियल रहस्यमई गांव और उनके पीछे की रहस्यमई कहानी
[…] ये भी पढ़े:-Kashi Vishwanath : जानें इस मंदिर से जुडी कुछ पौरा… […]
[…] ये भी पढ़े:-Kashi Vishwanath : जानें इस मंदिर से जुडी कुछ पौरा… […]
[…] ये भी पढ़े:-Kashi Vishwanath : जानें इस मंदिर से जुडी कुछ पौरा… […]
[…] Kashi Vishwanath : जानें इस मंदिर से जुडी कुछ पौरा… […]
[…] Kashi Vishwanath : जानें इस मंदिर से जुडी कुछ पौरा… […]
[…] ये भी पढ़े:-Kashi Vishwanath : जानें इस मंदिर से जुडी कुछ पौरा… […]
[…] ये भी पढ़े:-Kashi Vishwanath : जानें इस मंदिर से जुडी कुछ पौरा… […]
[…] ये भी पढ़े:-Kashi Vishwanath : जानें इस मंदिर से जुडी कुछ पौरा… […]
[…] ये भी पढ़े:-Kashi Vishwanath : जानें इस मंदिर से जुडी कुछ पौरा… […]