Mother Teresa Birth Anniversary : मदर टेरेसा, जिनका असली नाम एग्नेस गोंझा बोजाक्षीउ था, एक अल्बानियाई-भारतीय रोमन कैथोलिक नन थीं। उन्होंने अपना जीवन गरीबों, बीमारों और बेसहारा लोगों की सेवा में समर्पित किया। उनकी करुणा और सेवाभावना ने उन्हें वैश्विक मान्यता और सम्मान दिलाया, और वे मानवता की प्रतीक बन गईं।
इस आर्टिकल में हम आपको मदर टेरेसा के जीवन से जुड़ी कुछ महत्वपूर्ण उपलब्धियां के बारे में बतायेगे। जिसे पढ़ कर आपके दिल में भी मानवता के प्रति सेवा और समर्पण की भावना पैदा होगी।
Today on her birth anniversary, we remember Mother Teresa and her tireless dedication towards the vulnerable and the needy. Her service to humanity not only saved millions of lives but lives on as a source of inspiration to the day. pic.twitter.com/kgSNt4GMam
— Congress (@INCIndia) August 26, 2020
Mother Teresa Birth Anniversary : सेवा और समर्पण की मिसाल
मदर टेरेसा, जिन्हें “संत टेरेसा” के नाम से भी जाना जाता है, उनकी जयंती 26 अगस्त को मनाई जाती है। मदर टेरेसा का जन्म 26 अगस्त 1910 को यूगोस्लाविया (वर्तमान में उत्तर मेसेडोनिया) के स्कोप्जे शहर में हुआ था। उनका असली नाम अग्नेस गोंझा बोजशिउ था।
प्रारंभिक जीवन और सेवा का आरंभ
अग्नेस ने 18 साल की उम्र में नन बनने का निर्णय लिया और आयरलैंड के लोरेटो एबे में शामिल हो गईं। 1929 में वे भारत आईं और कलकत्ता (वर्तमान कोलकाता) में स्थित सेंट मैरी हाई स्कूल में अध्यापन करने लगीं। यहीं पर उन्हें भारत के गरीब और बीमार लोगों की दुर्दशा का सामना करना पड़ा और उनकी सेवा का संकल्प लिया।
मिशनरीज ऑफ चैरिटी की स्थापना
1948 में मदर टेरेसा ने लोरेटो कॉन्वेंट छोड़ा और गरीबों, अनाथों, बीमारों और मरने वालों की सेवा करने के लिए मिशनरीज ऑफ चैरिटी की स्थापना की। इस संगठन का मुख्य उद्देश्य जरूरतमंदों की सेवा करना था, चाहे वे किसी भी धर्म, जाति या समुदाय के हों।
सेवा और समर्पण का कार्य
मदर टेरेसा ने अपने जीवन का हर क्षण गरीबों और बीमारों की सेवा में बिताया। उन्होंने कई होम्स और आश्रय स्थलों की स्थापना की जहां अनाथ, बीमार और बेघर लोग आश्रय पा सकते थे। उनके इस कार्य के लिए उन्हें अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मान्यता मिली और 1979 में उन्हें नोबेल शांति पुरस्कार से सम्मानित किया गया।
विरासत और सम्मान
मदर टेरेसा की सेवाओं को देखते हुए, उन्हें भारत सरकार द्वारा 1980 में भारत रत्न से सम्मानित किया गया। 1997 में उनकी मृत्यु के बाद, 2016 में पोप फ्रांसिस द्वारा उन्हें संत घोषित किया गया।
मदर टेरेसा की जयंती हमें सेवा, करुणा और मानवता की याद दिलाती है। उनके द्वारा दिखाए गए मार्ग पर चलकर हम अपने समाज में सकारात्मक परिवर्तन ला सकते हैं।
मदर टेरेसा का प्रारंभिक जीवन
मदर टेरेसा, जिन्हें संत टेरेसा के नाम से भी जाना जाता है, का जन्म 26 अगस्त 1910 को यूगोस्लाविया (वर्तमान उत्तर मेसेडोनिया) के स्कोप्जे शहर में हुआ था। उनका असली नाम अग्नेस गोंझा बोजशिउ था।
परिवार और प्रारंभिक शिक्षा
अग्नेस गोंझा बोजशिउ का परिवार अल्बानियाई मूल का था और वे एक धार्मिक ईसाई परिवार से थीं। उनके पिता का नाम निकोला बोजशिउ था और वे एक सफल व्यवसायी थे, जबकि उनकी माँ द्राने बोजशिउ एक धार्मिक और करुणामयी महिला थीं, जिन्होंने अग्नेस को सेवा और करुणा का महत्व सिखाया।
अग्नेस ने प्रारंभिक शिक्षा स्कोप्जे के एक स्थानीय स्कूल में प्राप्त की। छोटी उम्र से ही उनमें धर्म और सेवा के प्रति गहरी रुचि विकसित हो गई थी। 12 साल की उम्र में ही उन्होंने नन बनने का निर्णय ले लिया था।
धर्म और सेवा की ओर आकर्षण
18 साल की उम्र में, अग्नेस ने अपने परिवार और दोस्तों को छोड़कर आयरलैंड जाने का फैसला किया, जहां वे लोरेटो एबे में शामिल हुईं। वहां उन्होंने इंग्लिश भाषा सीखी और अपने धार्मिक शिक्षा की शुरुआत की। 1929 में, वे आयरलैंड से भारत आईं और कोलकाता (तब का कलकत्ता) में सेंट मैरी हाई स्कूल में अध्यापन का कार्य शुरू किया।
भारत में सेवा का आरंभ
भारत आने के बाद, अग्नेस का नाम बदलकर “टेरेसा” रखा गया, जो सेंट टेरेसा ऑफ़ लिसिएक्स के सम्मान में रखा गया था। कोलकाता में पढ़ाते हुए, मदर टेरेसा ने गरीबों और बीमारों की दुर्दशा को देखा और उनके लिए कुछ करने की प्रेरणा महसूस की।
1946 में, एक ट्रेन यात्रा के दौरान, उन्होंने अनुभव किया कि उन्हें ईश्वर ने गरीबों और असहायों की सेवा करने का निर्देश दिया है। इस अनुभव ने उनके जीवन को बदल दिया और उन्होंने लोरेटो कॉन्वेंट छोड़कर मिशनरीज ऑफ चैरिटी की स्थापना की।
मदर टेरेसा का प्रारंभिक जीवन हमें दिखाता है कि कैसे एक साधारण लड़की ने अपनी करुणा और सेवा की भावना से लाखों लोगों के जीवन में बदलाव लाया। उनकी दृढ़ इच्छाशक्ति और समर्पण ने उन्हें महान बना दिया और आज भी वे प्रेरणा का स्रोत बनी हुई हैं।
मदर टेरेसा भारत कब और कहाँ आई थी
मदर टेरेसा 1929 में भारत आई थीं। वे 19 साल की उम्र में आयरलैंड के लोरेटो एबे से कोलकाता (तब का कलकत्ता), भारत पहुंचीं। भारत आने के बाद, वे सेंट मैरी हाई स्कूल में अध्यापन का कार्य करने लगीं, जो लोरेटो कॉन्वेंट का एक हिस्सा था।
यहीं पर उन्होंने अपने जीवन का बड़ा हिस्सा गरीबों, बीमारों और असहायों की सेवा में बिताया। कोलकाता में ही उन्हें गरीबों की दुर्दशा को देखकर उनके लिए कुछ करने की प्रेरणा मिली, जिससे बाद में उन्होंने मिशनरीज ऑफ चैरिटी की स्थापना की।
मदर टेरेसा के द्वारा खोला गया आश्रम
मदर टेरेसा ने अपने जीवन का अधिकांश हिस्सा गरीबों, बीमारों, अनाथों और असहायों की सेवा में समर्पित किया। उन्होंने विभिन्न प्रकार के आश्रम और सेवा केंद्र स्थापित किए। यहाँ कुछ प्रमुख आश्रम और सेवा केंद्रों की जानकारी दी गई है:
1. निर्मल हृदय (1952)
मदर टेरेसा ने 1952 में कोलकाता में निर्मल हृदय (Pure Heart) आश्रम की स्थापना की। यह आश्रम उन लोगों के लिए था जो गंभीर रूप से बीमार थे और सड़कों पर मर रहे थे। यहाँ वे सम्मानपूर्वक अपनी अंतिम साँस ले सकते थे और उन्हें चिकित्सा सहायता, भोजन और देखभाल प्रदान की जाती थी।
2. निर्मला शिशु भवन (1955)
निर्मला शिशु भवन का उद्घाटन 1955 में किया गया। यह आश्रम अनाथ बच्चों और मानसिक रूप से विकलांग बच्चों के लिए है। यहाँ बच्चों को भोजन, शिक्षा, चिकित्सा देखभाल और प्यार भरा माहौल प्रदान किया जाता है।
3. प्रेम निवास
प्रेम निवास कुष्ठ रोग से पीड़ित लोगों के लिए स्थापित किया गया था। यहाँ कुष्ठ रोगियों को चिकित्सा देखभाल, आश्रय और पुनर्वास सेवाएँ प्रदान की जाती थीं।
4. मदर हाउस
मदर हाउस, जिसे मिशनरीज ऑफ चैरिटी का मुख्यालय भी कहा जाता है, कोलकाता में स्थित है। यहाँ मदर टेरेसा का मकबरा भी है और यह स्थान उनकी सेवाओं का केंद्र रहा है।
5. शांति नगर
शांति नगर कुष्ठ रोगियों के लिए एक और प्रमुख आश्रम है, जहाँ उन्हें चिकित्सा सेवाएं, आश्रय और पुनर्वास की सुविधा प्रदान की जाती है।
6. निर्मल ज्योति
निर्मल ज्योति आश्रम का उद्देश्य गरीबों और असहायों को चिकित्सा सहायता प्रदान करना है। यहाँ बीमार और घायल लोगों को निःशुल्क चिकित्सा सेवाएँ दी जाती हैं।
7. टिटागढ़ आश्रम
कोलकाता के पास स्थित टिटागढ़ में भी एक आश्रम है जहाँ गरीबों, विशेषकर महिलाओं और बच्चों को सहायता प्रदान की जाती है। यहाँ उन्हें भोजन, आश्रय और शिक्षा मिलती है।
मदर टेरेसा द्वारा स्थापित ये आश्रम और सेवा केंद्र उन लाखों लोगों के लिए आशा की किरण बने हैं, जिन्हें समाज ने त्याग दिया था। उनके कार्यों ने दुनिया को करुणा, प्रेम और सेवा का सच्चा अर्थ सिखाया।
Kargil Vijay Diwas : जानें भारतीय सेना के शहादत के कुछ अनसुनी किस्से
मदर टेरेसा के अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कार
मदर टेरेसा का जीवन सेवा और समर्पण का प्रतीक है। उन्होंने गरीबों, बीमारों और असहायों की सेवा में अपना जीवन व्यतीत किया। उनके इस महान कार्य के लिए उन्हें विभिन्न अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कारों से सम्मानित किया गया। यहां उनके प्रमुख अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कारों की सूची दी गई है:
1. नोबेल शांति पुरस्कार (1979)
मदर टेरेसा को 1979 में नोबेल शांति पुरस्कार से सम्मानित किया गया। यह पुरस्कार उन्हें उनके द्वारा गरीबों और बीमारों की निःस्वार्थ सेवा के लिए दिया गया। नोबेल समिति ने कहा कि मदर टेरेसा ने “गरीबों की रानी” के रूप में काम किया है।
2. ऑर्डर ऑफ मेरिट (1983)
मदर टेरेसा को 1983 में ब्रिटेन की महारानी एलिजाबेथ द्वितीय द्वारा ऑर्डर ऑफ मेरिट से सम्मानित किया गया। यह सम्मान उन व्यक्तियों को दिया जाता है जिन्होंने कला, साहित्य, या विज्ञान के क्षेत्र में या सार्वजनिक सेवा में असाधारण योगदान दिया हो।
3. बेल्जियम का ऑर्डर ऑफ़ द वाइट ईगल (1985)
1985 में, बेल्जियम सरकार ने मदर टेरेसा को उनके सामाजिक कार्यों के लिए ऑर्डर ऑफ़ द वाइट ईगल से सम्मानित किया।
4. प्रेसिडेंशियल मेडल ऑफ फ्रीडम (1985)
मदर टेरेसा को 1985 में संयुक्त राज्य अमेरिका के राष्ट्रपति द्वारा प्रेसिडेंशियल मेडल ऑफ फ्रीडम से सम्मानित किया गया। यह अमेरिका का सर्वोच्च नागरिक सम्मान है।
5. कांग्रेसनल गोल्ड मेडल (1997)
1997 में, मदर टेरेसा को अमेरिका का कांग्रेसनल गोल्ड मेडल प्रदान किया गया। यह मेडल उन व्यक्तियों को दिया जाता है जिन्होंने अमेरिकी समाज और दुनिया पर महत्वपूर्ण प्रभाव डाला हो।
6. बाल्ज़न पुरस्कार (1978)
मदर टेरेसा को 1978 में मानवता, शांति और भाईचारे के लिए बाल्ज़न पुरस्कार से सम्मानित किया गया। यह पुरस्कार अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर उत्कृष्ट कार्यों को मान्यता देने के लिए दिया जाता है।
7. टेम्पलटन पुरस्कार (1973)
1973 में मदर टेरेसा को टेम्पलटन पुरस्कार से सम्मानित किया गया। यह पुरस्कार उन्हें उनकी उत्कृष्ट आध्यात्मिकता और मानवता की सेवा के लिए दिया गया।
अन्य सम्मान
इसके अतिरिक्त, मदर टेरेसा को विभिन्न देशों और संगठनों द्वारा अन्य कई पुरस्कार और सम्मान मिले। इनमें शामिल हैं:
भारत रत्न (1980)
जवाहरलाल नेहरू पुरस्कार (1969)
अल्बर्ट श्वाइट्ज़र अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कार (1975)
पॉप जॉन XXIII पीस प्राइज (1971)
मदर टेरेसा का जीवन और कार्य अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर मान्यता प्राप्त हुए हैं, और उनके द्वारा दिखाए गए सेवा और समर्पण के मार्ग को दुनिया भर में सराहा गया है। उनकी विरासत आज भी लोगों को प्रेरणा देती है।
मदर टेरेसा की मृत्यु
मदर टेरेसा का निधन 5 सितंबर 1997 को हुआ था। वे 87 वर्ष की थीं। उनके निधन के समय, वे कोलकाता, भारत में थीं, जहाँ उन्होंने अपना अधिकांश जीवन गरीबों, बीमारों और असहायों की सेवा में समर्पित किया था। मदर टेरेसा की मृत्यु के बाद, उन्हें पूरे विश्व में श्रद्धांजलि दी गई और उनके कार्यों और सेवा के प्रति सम्मान प्रकट किया गया।
मदर टेरेसा की अंतिम यात्रा में विभिन्न धर्मों और समुदायों के लोग शामिल हुए, जिससे यह स्पष्ट हुआ कि उनकी सेवा और करुणा ने न केवल भारत में बल्कि पूरे विश्व में लोगों के दिलों में गहरी छाप छोड़ी थी।
उनके निधन के बाद, मदर टेरेसा को कोलकाता के “मदर हाउस” में दफनाया गया, जो मिशनरीज ऑफ चैरिटी का मुख्यालय है। 2016 में, पोप फ्रांसिस ने मदर टेरेसा को संत की उपाधि से सम्मानित किया, जिससे वे “संत टेरेसा” के नाम से भी जानी जाने लगीं। उनके जीवन और कार्य ने अनगिनत लोगों को प्रेरित किया है। आज भी उनकी विरासत सेवा और मानवता के प्रतीक के रूप में जीवित है।
निष्कर्ष
मदर टेरेसा का जीवन और कार्य हमें सिखाता है कि सच्ची सेवा और समर्पण का मार्ग कभी भी आसान नहीं होता, लेकिन यह हमें आत्मिक संतोष और समाज में वास्तविक परिवर्तन लाने की क्षमता प्रदान करता है। उनकी जयंती के अवसर पर हम सभी को उनके आदर्शों का पालन करने और अपने समाज में योगदान देने का संकल्प लेना चाहिए।
मदर टेरेसा की प्रेरणादायक कहानी और उनकी अमूल्य सेवाओं का महत्व हमें यह सोचने पर मजबूर करता है कि हम अपने जीवन में दूसरों की भलाई के लिए क्या कर सकते हैं।
ये भी पढ़े:-OnePlus Ace 3 Pro Launch : सैमसंग की लुटिया डुबोने आई वनप्लस की ये शानदार फ़ोन