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Rabindranath Tagore JayantiRabindranath Tagore Jayanti

Rabindranath Tagore Jayanti 2024: आज 7 मई हैं और आज के दिन ही आज़ाद भारत के एक जननायक और नोबेल पुरस्कार प्राप्त एक महान इंसान का जन्म हुआ था जिनका नाम रविंद्र नाथ टैगोर था।  आज हम भारतवासी उनकी 162 वीं जन्मदिन माना रहे है। आज हम इस आर्टिकल में उनसे जुड़े कुछ अनकही किस्से और कहानी बताउगा।

रविंद्र नाथ टैगोर का जन्म 7 मई 1861 को बंगाल के एक ब्राह्मण परिवार में हुआ था। उनका परिवार उसे समय के भारत के सबसे अमीर और समृद्ध खदानों में से एक माना जाता था। उनका बचपन में सरनेम खोरी हुआ करता था। लेकिन क्योंकि वे एक अमीर परिवार से ताल्लुक रखते थे, इसलिए उनके परिवार को ठाकुर कहा जाता था। लेकिन अंग्रेज ठाकुर शब्द को ठीक से पन्नो से नहीं कर पाते द इसलिए उन्होंने टैगोर नाम रख दिया।

उसके बाद से रविंद्र नाथ सहित उनके पूरे परिवार को टैगोर खानदान के नाम से ही पहचान मिलने लगी। Rabindranath Tagore के दादा द्वारका और महाराजाओं के साथ उनकी अच्छी बातचीत थी। रविंद्रनाथ टैगोर के पिता का नाम देवेंद्र नाथ टैगोर था। लेकिन वे एक बिजनेसमैन थे जो व्यापार की बजाय अध्यात्म की ओर उनकी अधिक रुचि रहती थी। और इसी वजह से वह धर्म-कर्म  के कार्यों में ही व्यस्त रहते द रविंद्रनाथ टैगोर की माँ का नाम शारदा देवी था।

Rabindranath Tagore अपने माता-पिता की 14वीं संतान थे। जब वो 14 वर्ष के थे तभी उनकी माँ की एक बीमारी के कारण देहात हो गया था। जिसके बाद रविंद्र नाथ टैगोर की परवरिश घर के नौकरानी के द्वारा की गई थी। रविंद्र नाथ टैगोर ने इसे sarvokr ऐसी नाम दिया जहां बच्चे घर के नौकरों द्वारा पाल जाते द रविंद्रनाथ टैगोर का मन पढाई लिखाई में नहीं लगता था। स्कूल में उन्होंने टीचर से भी बहुत मार खाई है समय समय पर वे अपने स्कूल में बदलाव भी करते रहे।

कभी कहता है अकादमी तो कभी ओरिएंटल सेमिनरी और सेंट ज़ेवियर जैसे कई स्कूलों में उनका दाखिला कराया गया। लेकिन कहीं पर भी उनका मन पढाई में नहीं लगा, जिसके बाद उनके भाई हेमेंद्र नाथ टैगोर ने घर पर ही रविंद्र नाथ टैगोर को पढ़ाया। हेमेंद्र नाथ टैगोर ने रविंद्र नाथ टैगोर सिर्फ गणित विज्ञान और लिटरेचर पढ़ाया बल्कि जूडो रेसलिंग जिम्नास्टिक स्विमिंग और ट्रैकिंग जैसी एक्टिविटी भी सिखाई। इन सबके लिए अलग-अलग शिक्षक रखे गए थे।

इतना ही नहीं बंगाल के महान म्यूजिशियन जैसे जादू नाथ भट्टाचार्य Rabindranath Tagore को संगीत सीखने आया करते थे। जादू नागा भट्टाचार्य ने ही भारतीय राष्ट्रीय गण की धुन को कंपोस्ट किया था। जब रविंद्र नाथ टैगोर 12 वर्ष के हुए तो उनके पिता ने उन्हें सेल्फ डिस्कवरी का ज्ञान देना शुरू किया। एक महीने तक रविंद्र नाथ टैगोर अमृतसर के गोल्डन टेंपल में रहे। रविंद्र नाथ टैगोर ने कुछ समय हिमालय की गोद में बसे एक खूबसूरत पहाड़ी इलाके डलहौजी में भी गुजारा था।

इसके बाद उनके पिता ने एस्ट्रोनॉमी,मॉडर्न साइंस जैसे विषयों के बारे में भी Rabindranath Tagore को शिक्षा दी। रवींद्रनाथ टैगोर के घर में सभी लोग काफी शिक्षित और टैलेंटेड थे। कोई महान लेखक था,तो कोई पेंटिंग किया करता था। रविंद्र नाथ टैगोर के भाई सत्येंद्र नाथ टैगोर पहले भारतीय थे। जिन्होंने सैन 1964 में लंदन जाकर इंडियन सिविल सर्विस की परीक्षा पास की थी, जो उस समय के इंडियन सिविल सर्विस की परीक्षा काफी मुश्किल मानी जाती थी।

सन 1878 में Rabindranath Tagore अपने भाई के साथ हायर एजुकेशन के लिए लंदन चले गए। यहां उन्होंने वकालत की पढाई करनी शुरू कर दिया। रविंद्र नाथ टैगोर के पिता उन्हें वकील बनाना चाहते थे। इधर टैगोर का मैन वकालत की पढ़ में बिल्कुल नहीं लगता था। उन्होंने लंदन में रहकर इंग्लिश लिटरेचर का ज्ञान लिया और सेक्सपियर जैसे महान लोगो के बारे में पढ़ा साथ ही इंग्लिश आइरिस और स्कॉटिश म्यूजिक भी सिखा।

जिस कॉलेज में Rabindranath Tagore ने पढाई की थी वहां आज भी लिटरेचर में टैगोर लेक्चर सीरीज को सिलेबस में शामिल किया हुआ है। रविंद्र नाथ टैगोर ने अपनी पहली कविता आठ साल की उम्र में लिखी थी। 13 साल की उम्र में उनकी पहली कविता पब्लिश हुई थी। यह कविता तत्त्वबोधिनी पत्रिका में पब्लिश हुई थी धीरे-धीरे उन्होंने गाने लिखने शुरू किए। आपको जानकर हैरानी होगी की रविंद्र नाथ टैगोर ने स्वामी विवेकानंद जी को भी अपने लिखे हुए गाने सिखाए थे।

जिसके बाद स्वामी विवेकानंद ब्रह्म समाज के एक सदस्य की शादी में गाने के लिए भी गए थे। स्वामी विवेकानंद और Rabindranath Tagore में अच्छी दोस्ती मानी जाती थी। उनके गानों में हिंदुस्तान की क्लासिक म्यूजिक के साथ-साथ कर्नाटिक म्यूजिक गुरबाणी और आयरिश म्यूजिक का मिश्रण नजर आता था। बंगाली म्यूजिक इंडस्ट्री और बॉलीवुड म्यूजिक इंडस्ट्री के कई गानों में रविंद्रनाथ टैगोर के म्यूजिक और धुन का इंपैक्ट साफ देखा जा सकता है।

जिसमें बॉलीवुड का मशहूर गाना छूकर मेरे मैन को किया तूने क्या इरादा जैसे गीत भी शामिल है। काबुलीवाला नाम की उनकी कहानी भी काफी फेमस है। उन्होंने 22 साल की उम्र में नोबेल लिखना शुरू कर दिया था। गीतांजलि कविता संग्रह में उनकी काफी फेमस पुस्तक है, जिनका इंग्लिश ट्रांसलेशन यूरोप और अमेरिका में बहुत पसंद किया गया था। रविंद्र नाथ टैगोर की लव स्टोरी भी काफी रोचक रही है।

जब वे 8 साल के थे तब उनके बड़े भाई जीतेन्द्र नाथ टैगोर की शादी हुई थी और उनकी भाभी कादंबरी देवी की उम्र उसे समय केवल 10 साल की थी। कादंबरी के पति उसे 10 साल बड़े थे और इसलिए उनकी अधिक दोस्ती रवींद्रनाथ टैगोर के साथ हुई। दोनों के बीच दोस्ती काफी हो गई थी। सन 1833 में रविंद्रनाथ टैगोर का विवाह डालनी देवी के साथ हुआ था। इस शादी से कादंबरी देवी को गहरा झटका लगा था।

जिसके चलते उन्होंने ये शादी रोकने की और शादी के बाद इसे तोड़ने की भी काफी कोशिश की थी। रविंद्र नाथ टैगोर को वह किसी और के साथ नहीं देख सकती थी। इसलिए 1884 में उन्होंने आत्महत्या कर ली थी। 1905 में बंगाल विभाजन के बाद उन्होंने एक कविता लिखी थी अमर सोनार बांग्ला जिसे आज बांग्लादेश के राष्ट्रीय गण के रूम में जाना जाता है।

उन्होंने उसे समय कहा था की हिंदू मुसलमान एक साथ रक्षाबंधन का त्यौहार मनाई और अंग्रेजों को अपनी एकता का परिचय दे एक लाख चलो रे उनका एक और प्रसिद्ध गीत है जो आपने सुना भी होगा। सन 1911 में उनके द्वारा लिखा गया जन गण मन गीत पहली बार कांग्रेस के कोलकाता अधिवेशन में गया गया था और उसे समय ब्रिटेन के किंग जॉर्ज पंचम भी वहां मौजूद थे।

हालांकि जन गण मन को लेकर उन्हें काफी आलोचनाओं का सामना भी करना पड़ा और उन पर अंग्रेजों की चापलूसी करने के आरोप लगाने शुरू हो गए थे। लेकिन रविंद्र नाथ टैगोर ने बताया की उनके गीत में भारत भाग्य विधाता देश के लोगों और ईश्वर को कहा गया है कोई अंग्रेज कभी भारत का भाग्य विधाता नहीं बन सकता।

सन 1939 में उन्होंने एक पत्र लिखकर इस बात का स्पष्टीकरण भी किया था बाद में नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने इस गीत के पहले सेंटेंस को आजाद हिंद फौज का एंथम बनाया और बाद में इसे भारत के संविधान में राष्ट्रीय गीत के रूप में स्वीकार किया गया। सन 1943 में रविंद्रनाथ टैगोर पहले भारतीय थे जिन्हें नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। कुछ लोगों ने ये भी कहा की अंग्रेजों की चापलूसी के कारण ही उन्हें ये ख़िताब मिला है।

लेकिन असल में उन्हें ये खिताब तो उनके महान साहित्य के लिए मिला था। 1915 में अंग्रेजों ने रविंद्र नाथ टैगोर को नाइट हूड की उपाधि से सम्मानित किया था। 1919 में जलियांवाला बाग कांड के बाद उन्होंने यह उपाधि अंग्रेज सरकार को वापस कर दी थी। रविंद्र नाथ टैगोर और गांधी के बीच काफी अच्छी दोस्ती मानी जाती थी। कई बातों पर उनके विचार भले ही अलग-अलग ये।

लेकिन देश को आजाद करने की लड़ाई में दोनों साथ थे, गांधीजी नेशनलिज्म की थ्योरी पर विश्वास करते थे तो वही रविंद्र नाथ टैगोर इंटरनेशनल की धुरी मानते थे। इसके बावजूद जरूरत पड़ने पर हर बार दोनों ने एक दूसरे की मदद की है। गांधी जी को महात्मा गांधी की उपाधि रविंद्र नाथ टैगोर ने ही दी थी और वहीं गांधी जी ने रविंद्र नाथ टैगोर को गुरुदेव की उपाधि दी थी। नेताजी सुभाष चंद्र बोस को रविंद्र नाथ टैगोर ने देश नायक का टाइटल दिया था।

7 अगस्त सन 1941 में 80 साल की उम्र में रविंद्र नाथ टैगोर ने अंतिम सांस ली और दुनिया को हमेशा के लिए अलविदा का दिया था। लेकिन उनके महान विचार महान साहित्य कविताएं और उनके आदर्श आज भी जिंदा है जो उन्हें सदियों तक अमर बना कर रखेंगे। रवींद्रनाथ टैगोर ने अपने जीवन में 2200 से अधिक गाने लिखने के साथ 3400 से अधिक देशों में यात्राएं की थी।

उनके द्वारा 2300 से अधिक पेंटिंग बनाई गई थी साथ ही ना जाने कितनी कहानियां और कविताएं रविंद्र नाथ टैगोर ने लिखी थी। इन सब के आधार पर रविंद्र नाथ टैगोर को 20वीं सदी का सबसे महान शख्सियत कहना बिल्कुल भी अतिशयोक्ति नहीं होगा। आज इस महान व्यक्ति के वर्षगांठ पर हम सभी देशवासी उनके द्वारा किये गए अनेकों कार्य और उनकी उपलब्धिया को नमन करते है।

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