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Death anniversary of fourth President V.V. GiriDeath anniversary of fourth President V.V. Giri

Death anniversary of fourth President V.V. Giri : वी. वी. गिरि, पूरा नाम वराहगिरी वेंकट गिरि, भारत के चौथे राष्ट्रपति थे। उनका कार्यकाल 24 अगस्त 1969 से 24 अगस्त 1974 तक रहा। वे भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के एक प्रमुख नेता भी थे। 

गिरि ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा आयरलैंड में की थी और वे एक वकील भी थे। उन्होंने स्वतंत्रता संग्राम में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई और भारतीय मजदूर संघ (AITUC) के संस्थापक सदस्यों में से एक थे। गिरि भारत के विभिन्न राजनीतिक और प्रशासनिक पदों पर भी रहे, जैसे कि भारत के उपराष्ट्रपति और भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के सदस्य।

वराहगिरी वेंकट गिरि (वी. वी. गिरि) का जीवन और योगदान भारतीय राजनीति और स्वतंत्रता संग्राम में महत्वपूर्ण स्थान रखते हैं।

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वी. वी. गिरि का जन्म 10 अगस्त 1894 को ओडिशा के  बेरहमपुर गांव में एक प्रतिष्ठित तेलुगू ब्राह्मण परिवार में हुआ था। उनके पिता का नाम वेंकट रत्नम था . जो एक प्रसिद्ध वकील और भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के सक्रिय सदस्य थे। प्रारंभिक शिक्षा पूरी करने के बाद, गिरि ने आयरलैंड के डबलिन विश्वविद्यालय में कानून की पढ़ाई की।

वहीं पर उन्होंने आयरिश स्वतंत्रता संग्राम के नेताओं से प्रेरणा ली और भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में सक्रिय रूप से भाग लेने का निर्णय लिया।

 fourth President V.V. Giri स्वतंत्रता संग्राम में योगदान

1916 के आयरिश विद्रोह के नेताओं के साथ उनके संदिग्ध संबंध के कारण उन्हें आयरलैंड छोड़ने का कानूनी नोटिस भेजा गया।

भारत लौटने के बाद उन्होंने मद्रास में वकालत शुरू की।

वह भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस में शामिल हो गए और एनी बेसेंट की होम रूल लीग में भी भाग लिया।

उन्होंने अपना सफल कानूनी करियर छोड़ दिया और 1922 में महात्मा गांधी के नेतृत्व में असहयोग आंदोलन के दौरान स्वतंत्रता आंदोलन में कूद पड़े।

उसी वर्ष उन्हें शराब की दुकानों के खिलाफ प्रदर्शन करने के कारण गिरफ्तार किया गया था।

गिरि भारत में श्रमिक आंदोलन में अपनी भूमिका के लिए जाने जाते थे।

वह 1923 में अखिल भारतीय रेलवे संघ के संस्थापक सदस्यों में से एक और महासचिव थे।

वे पहली बार 1926 में अखिल भारतीय ट्रेड यूनियन कांग्रेस के अध्यक्ष बने।

उन्होंने बंगाल नागपुर रेलवे एसोसिएशन की भी स्थापना की। 1928 में, उन्होंने छंटनी किए गए श्रमिकों के अधिकारों के लिए बंगाल नागपुर रेलवे के श्रमिकों की शांतिपूर्ण हड़ताल का नेतृत्व किया। यह भारत में एक ऐतिहासिक श्रमिक आंदोलन था और अंत में सरकार को श्रमिकों की मांगों को मानना ​​पड़ा।

Death anniversary of fourth President V.V. Giri
Death anniversary of fourth President V.V. Giri

Death anniversary of fourth President V.V. Giri in hindi

गिरि भारतीय ट्रेड यूनियन फेडरेशन (आईटीयूएफ) के अध्यक्ष भी थे, जिसकी स्थापना उन्होंने 1929 में एनएम जोशी और अन्य के साथ मिलकर की थी।

गिरि ने 1927 में अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन के अंतर्राष्ट्रीय श्रम सम्मेलन में भेजे गए भारतीय प्रतिनिधिमंडल में श्रमिकों का प्रतिनिधित्व किया ।

उन्होंने द्वितीय गोलमेज सम्मेलन में भी श्रमिकों का प्रतिनिधित्व किया।

गिरि 1934 से 1937 तक इंपीरियल विधान परिषद के सदस्य रहे।

वह मद्रास विधान सभा के सदस्य भी थे।

वह 1937-39 के दौरान सी राजगोपालाचारी के नेतृत्व वाली प्रांतीय कांग्रेस सरकार में श्रम और उद्योग मंत्री थे।

गिरि ने भारत छोड़ो आंदोलन में भाग लिया और तीन साल तक जेल में रहे।

गिरि ने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में सक्रिय भाग लिया और कांग्रेस पार्टी के प्रमुख नेताओं में से एक बने। उन्होंने भारतीय मजदूर संघ (AITUC) के संस्थापक सदस्यों में से एक के रूप में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई और मजदूरों के अधिकारों के लिए संघर्ष किया। उन्हें कई बार अंग्रेजी सरकार द्वारा जेल में भी डाला गया।

 fourth President V.V. Giri राजनीतिक जीवन

स्वतंत्रता के बाद, गिरि विभिन्न महत्वपूर्ण राजनीतिक और प्रशासनिक पदों पर रहे:

संयुक्त प्रांत (वर्तमान उत्तर प्रदेश) के राज्यपाल (1956-1960)

मैसूर (वर्तमान कर्नाटक) के राज्यपाल (1960-1965)

केरल के राज्यपाल (1965-1967)

भारत के उपराष्ट्रपति (13 मई 1967 – 3 मई 1969)

राष्ट्रपति कार्यकाल: 24 अगस्त 1969 – 24 अगस्त 1974

वह 1967 में देश के उपराष्ट्रपति चुने गए और 1969 में तत्कालीन राष्ट्रपति जाकिर हुसैन की मृत्यु के बाद कार्यवाहक राष्ट्रपति बने।वी. वी. गिरि 1969 में भारत के राष्ट्रपति बने। उन्होंने एक स्वतंत्र उम्मीदवार के रूप में चुनाव लड़ा और भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के विभाजन के बावजूद चुनाव जीते। 

 fourth President V.V. Giri राष्ट्रपति के बाद का जीवन

राष्ट्रपति पद से सेवानिवृत्त होने के बाद, गिरि ने सार्वजनिक जीवन से खुद को अलग कर लिया और मद्रास (वर्तमान चेन्नई) में बस गए।उनके राष्ट्रपति पद के दौरान कई महत्वपूर्ण घटनाएँ घटीं, जिनमें बांग्लादेश मुक्ति संग्राम और 1971 का भारत-पाकिस्तान युद्ध शामिल हैं, और वे एक लोकप्रिय राष्ट्रपति के रूप में जाने जाते थे। वी. वी. गिरि का निधन 23 जून 1980 को हुआ। उनके योगदान और सेवाओं के लिए उन्हें हमेशा याद किया जाएगा।

 fourth President V.V. Giri सम्मान और विरासत

वी. वी. गिरि के योगदान को भारतीय समाज में हमेशा याद करते हुए भारत के सर्वोच्च नागरिक सम्मान ( भारत रत्न ) से सम्मानित किया गया था । उनके नाम पर कई संस्थान और योजनाएँ हैं जो उनकी स्मृति को जीवित रखती हैं। उन्होंने भारतीय राजनीति में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई और देश के विकास में अपने योगदान के लिए हमेशा सम्मानित रहेंगे।

 

वी. वी. गिरि की जीवनी भारतीय स्वतंत्रता संग्राम और राजनीतिक इतिहास का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है, जो उनके जीवन, संघर्ष, और योगदान को दर्शाती है।

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