Indian Constitution Articles : भारतीय संविधान के अनुच्छेद 12 से 16 में नागरिकों के मौलिक अधिकारों की रक्षा के विषय में विवरण दिया गया है।
Article 12 of the Indian Constitution
भारतीय संविधान का अनुच्छेद 12 “राज्य” की परिभाषा से संबंधित है। इस अनुच्छेद के अनुसार, संविधान के भाग III में (जो मौलिक अधिकारों से संबंधित है) “राज्य” का क्या अर्थ होगा, यह परिभाषित किया गया है।
“इस भाग में, यदि संदर्भ से अन्यथा अपेक्षित न हो, ‘राज्य’ के अंतर्गत भारत की सरकार और संसद, राज्य की सरकार और विधान-मंडल, भारत के राज्य के भीतर सभी स्थानीय या अन्य प्राधिकारी और भारत सरकार के नियंत्रण के अधीन सभी स्थानीय या अन्य प्राधिकारी सम्मिलित हैं।”
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Indian Constitution Articles 12 to 16 in hindi
इस अनुच्छेद के तहत “राज्य” में निम्नलिखित शामिल हैं:
भारत की सरकार और संसद: इसमें केंद्रीय सरकार और संसद शामिल हैं।
राज्य की सरकार और विधान-मंडल: इसमें राज्य सरकारें और उनकी विधानसभाएँ शामिल हैं।
भारत के क्षेत्र के भीतर सभी स्थानीय या अन्य प्राधिकारी: इसमें स्थानीय सरकारें, जैसे नगर निगम, पंचायत आदि शामिल हैं।
भारत सरकार के नियंत्रण के अधीन सभी स्थानीय या अन्य प्राधिकारी: इसमें वे सभी प्राधिकारी शामिल हैं जो भारत सरकार के नियंत्रण में हैं।
इस परिभाषा के अंतर्गत आने वाले सभी निकायों पर मौलिक अधिकारों का प्रभाव होता है और ये निकाय नागरिकों के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन नहीं कर सकते।
Article 13 of the Indian Constitution
भारतीय संविधान का अनुच्छेद 13 भारतीय संविधान के मौलिक अधिकारों के अध्याय में आता है। यह अनुच्छेद “मौजूदा क़ानूनों का और असंगत क़ानूनों का शून्यकरण” से संबंधित है। इसका उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि मौलिक अधिकारों के विपरीत कोई भी क़ानून या क़ानूनी प्रावधान प्रभावी न हो।
अनुच्छेद 13 में निम्नलिखित बातें शामिल हैं:
मौजूदा क़ानूनों का परिक्षण: इस अनुच्छेद के तहत कहा गया है कि संविधान के प्रवर्तन (यानि लागू होने) से पूर्व जो भी क़ानून प्रभावी थे, उन्हें संविधान के अनुच्छेद 12 से 35 तक (मौलिक अधिकारों) के अनुरूप होना चाहिए। अगर वे मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करते हैं, तो वे शून्य और प्रभावहीन हो जाते हैं।
क़ानून का परिभाषा: इस अनुच्छेद के तहत क़ानून का अर्थ किसी भी क़ानूनी दस्तावेज़ से है, जिसमें क़ानून, नियम, विनियम, अध्यादेश, आदेश, अधिसूचना आदि शामिल हैं।
मौलिक अधिकारों का उल्लंघन: कोई भी क़ानून या क़ानूनी प्रावधान, जो मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करता है, वह शून्य और प्रभावहीन हो जाता है।
क़ानूनों का भविष्य में निर्माण: अनुच्छेद 13 के अनुसार, संसद या राज्य विधानमंडल द्वारा भविष्य में बनाए गए क़ानून भी मौलिक अधिकारों के अनुरूप होने चाहिए। यदि वे मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करते हैं, तो वे भी शून्य और प्रभावहीन माने जाएंगे।
भारतीय संविधान का अनुच्छेद 13 मौलिक अधिकारों की सुरक्षा के संदर्भ में महत्वपूर्ण है। यहां इस अनुच्छेद के मुख्य प्रावधानों का संक्षेप में उल्लेख किया गया है:
अनुच्छेद 13(1): इसके अनुसार, संविधान के प्रवर्तन (अर्थात् लागू होने) से पहले मौजूद सभी क़ानून जो मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करते हैं, वे असंवैधानिक और अप्रभावी हो जाते हैं। इसका मतलब है कि यदि कोई क़ानून मौलिक अधिकारों को उल्लंघित करता है, तो वह बिना किसी संविधानिक बुनियाद पर खुद से जारी किए जाने वाले हैं।
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अनुच्छेद 13(2): इस खंड में व्यक्त किया गया है कि राज्य को ऐसे किसी भी क़ानून या प्रावधान को बनाने से मना किया गया है, जो मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करें। इससे स्पष्ट होता है कि संविधान के माध्यम से मौलिक अधिकारों की सुरक्षा की गई है।
अनुच्छेद 13(3): इसमें ‘क़ानून’ की परिभाषा प्रस्तुत की गई है, जिसमें किसी भी विधिक दस्तावेज़, अध्यादेश, आदेश, नियम, विनियम, अधिसूचना, आदि शामिल हैं। इससे स्पष्ट होता है कि संविधान के अंतर्गत केवल विधिक दस्तावेज़ ही नहीं, बल्कि कस्टमरी लॉ और पारंपरिक कानून भी शामिल हैं।
अनुच्छेद 13(4): यह खंड संविधान (चौवालीसवाँ संशोधन) अधिनियम, 1978 के अनुसार प्रस्तुत किया गया है, जिसमें यह उल्लेख किया गया है कि अनुच्छेद 13(2) के अंतर्गत दिए गए प्रावधानों को संविधान संशोधन के लिए नहीं लागू किया जाएगा।
इस प्रकार, अनुच्छेद 13 भारतीय संविधान के मौलिक अधिकारों की रक्षा करता है और यह सुनिश्चित करता है कि कोई भी क़ानून इन अधिकारों का उल्लंघन न करे।
Article 14 of the Indian Constitution
संविधान के अनुच्छेद 14 भारतीय संविधान का एक महत्वपूर्ण अनुच्छेद है जो समानता के सिद्धांत को स्थापित करता है। इस अनुच्छेद के अंतर्गत, सभी नागरिकों को सामाजिक, धार्मिक, राजनीतिक और अर्थनीतिक दृष्टिकोण से बराबरी का अधिकार प्राप्त होता है। इसके तहत व्यक्तिगत स्तर पर भेदभाव नहीं किया जा सकता है।
किसी भी व्यक्ति को उनकी जाति, धर्म, लिंग, जन्म स्थान या किसी अन्य आधार पर अन्यायपूर्ण रूप से विभाजित नहीं किया जा सकता है।
भारतीय संविधान के अनुच्छेद 14 निम्नलिखित अधिकारों को सुनिश्चित करता है:
सभी नागरिकों को समानता का अधिकार: इस अनुच्छेद के अंतर्गत, किसी व्यक्ति को धार्मिक, सामाजिक, राजनीतिक या अर्थनीतिक किसी भी आधार पर भेदभाव नहीं किया जा सकता है।
अनुच्छेद 14(1) द्वारा व्यक्तिगत स्तर पर समानता: इसके अनुसार, सरकार को सभी नागरिकों को विशेष संरक्षण और समान अवसर प्रदान करने की जिम्मेदारी है।
अनुच्छेद 14(2) द्वारा भेदभाव निषेध: इस अनुच्छेद के अंतर्गत, कोई भी सामाजिक, धार्मिक, राजनीतिक या अर्थनीतिक आधार पर व्यक्ति के खिलाफ भेदभावपूर्ण व्यवहार नहीं किया जा सकता है।
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Article 15 of the Indian Constitution
भारतीय संविधान के अनुच्छेद 15 में व्यक्ति की जीवन, गुमनामी, धर्म, विचार और धन की स्वतंत्रता को संरक्षित किया गया है। इस अनुच्छेद के तहत, किसी भी व्यक्ति को उनके धर्म, विचार, स्वतंत्र मतभेदों, जीवन या गुमनामी के संरक्षण का अधिकार होता है। यह एक महत्वपूर्ण संविधानिक सुरक्षा है जो भारतीय नागरिकों को उनके मौलिक अधिकारों की रक्षा सुनिश्चित करता है।
Article 16 of the Indian Constitution
भारतीय संविधान का अनुच्छेद 16 उसे उच्चतम न्यायालय की स्थापना, विशेषकर न्यायिक प्राधिकरणों के अंतर्गत एक मुख्य न्यायाधीश की सिफारिश, अन्य न्यायाधीशों के चयन, उनकी अवधियाँ और सेवानिवृत्ति सहित उनके कार्यों के संबंध में विवरण प्रदान करता है। इस अनुच्छेद में भारतीय न्यायपालिका के संबंधित पहलू विस्तारपूर्वक व्याख्या किया गया है।
संविधान के अनुच्छेद 16 भारतीय गणराज्य के संविधानिक न्याय प्रणाली को स्थापित करता है। इस अनुच्छेद में निम्नलिखित मुख्य प्रावधान होते हैं:
सर्वोच्च न्यायालय की स्थापना: इस अनुच्छेद के अनुसार, भारत में सर्वोच्च न्यायालय की स्थापना होती है जो देश की सर्वोच्च न्यायिक प्राधिकरण होती है।
न्यायिक प्राधिकरणों की स्थापना: अनुच्छेद 16 द्वारा विभिन्न राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में न्यायिक प्राधिकरणों की स्थापना का प्रावधान होता है।
मुख्य न्यायाधीश एवं अन्य न्यायिक पदों की नियुक्ति: इस अनुच्छेद द्वारा सर्वोच्च न्यायालय और अन्य न्यायिक पदों की नियुक्ति, उनकी अवधियाँ और सेवानिवृत्ति से संबंधित विवरण प्रदान किए जाते हैं।
इस अनुच्छेद में न्यायपालिका के संबंधित विवरणों का परिपूर्ण वर्णन किया गया है जो भारतीय न्याय प्रणाली के व्यवस्थापन और कार्यवाही के लिए महत्वपूर्ण है।
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